रत्नावली
From जैनकोष
(1) एक तप । इसमें एक उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, चार उपवास एक पारणा, पाँच उपवास एक पारणा, पुन: पाँच उपवास एक पारणा, इसके पश्चात् चार उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा और एक उपवास एक पारणा के क्रम से तीस उपवास और दस पारणाएँ की जाती है । इसकी सर्वप्रथम बृहद्विधि में एक बेला और एक पारणा के क्रम से दस बेला और दस पारणाएँ की जाती है । पश्चात् एक-एक उपवास बढ़ाते हुए सोलह उपवास और एक पारणा करने के बाद एक बेला और एक पारणा के क्रम से तीस बेला और तीस पारणाएँ की जाती है । इसके पश्चात् सोलह उपवासों से एक घटाते हुए एक उपवास और एक पारणा तक आकर एक बेला और एक उपवास के क्रम से बारह बेला और बारह पारणाएँ करने के बाद अंत में चार वेला और चार धारणाएं की जाती है । इसमें कुल तीन सौ चौरासी उपवास और अठासी पारणाऐं की जाती है । यह एक वर्ष तीन मास बाईस दिन मे पूरा होता है । इस व्रत से रत्नत्रय में निर्मलता आती है । महापुराण 7.31, 44, 71-367, हरिवंशपुराण - 34.71,हरिवंशपुराण - 34.76, 60. 51
(2) मोती और रत्नों तथा स्वर्ण और मणियों से निर्मित हार । इसके मध्य मे मणि होता है । महापुराण 16.46, 50
(3) नित्यालोक नगर के राजा नित्यालोक और उनकी रानी श्रीदेवी की पुत्री । यह रावण की रानी थी । पयु0 9.102-103