यज्ञोपवीत
From जैनकोष
- यज्ञोपवीत का स्वरूप व महत्त्व
म. पु./३८/११२ उरोलिङ्गमथास्य स्याद् ग्रथितं सप्तभिर्गुणैः। यज्ञोपवीतकं सप्तपरमस्थानसूचकम्।११२। = उस (आठवें वर्ष ब्रह्मचर्याश्रम में अध्ययनार्थ प्रवेश करने वाले उस बालक) के वक्षस्थल का चिह्न सात तार का गूँथा हुआ यज्ञोपवीत है। यह यज्ञोपवीत सात परम स्थानों का सूचक है।
म. पु./३९/९५ यज्ञोपवीतमस्य स्याद् द्रव्यस्त्रिगुणात्मकम्। सूत्रमौपाक्षिकं तु स्याद् भावारूढैस्त्रिभिर्गुणैः।९५।
म. पु./४१/३१ एकाद्येकादशान्तानि दत्तन्येभ्यो मया विभो। व्रतचिह्नानि सूत्राणि गुणभूमिविभागतः।३१। = तीन तार का जो यज्ञोपवीत है वह उसका (जैन श्रावक का) द्रव्य सूत्र है और हृदय में उत्पन्न हुए सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और चारित्र रूपी गुणों से बना हुआ श्रावक का सूत्र उसका भाव सूत्र है।९५। (भरत महाराज ऋषभ देव से कह रहे हैं कि) हे विभो ! मैंने (श्रावकों को) ग्यारह प्रतिमाओं के विभाग से व्रतों के चिन्ह स्वरूप एक से लेकर ग्यारह तक सूत्र (ग्यारह लड़ा यज्ञोपवीत तक) दिये हैं।३१।) (म. पु./३८/२१-२२)।
- यज्ञोपवीत कौन धारण कर सकता है
म. पु./४०/१६७-१७२ तत्तु स्यादसिवृत्त्या वा मष्या कृष्या वणिज्यया। यथास्वं वर्तमानानां सद्दृष्टीनां द्विजन्मनाम्।१६७। कुतश्चिद् कारणाद् यस्य कुलं संप्राप्तदूषणम्। सोऽपि राजादिसंमत्या शोधयेत् स्वं सदा कुलम्।१६८। तदास्योपनयार्हत्वं पुत्रपौत्रादिसंततौ। न निषिद्धं हि दीक्षार्हे कुले चेदस्य पूर्वजाः।१६९। अदीक्षार्हे कुले जाता विद्याशिल्पोपजीविनः। एतेषामुपनीत्यादिसंस्कारो नाभिसंमतः।१७०। तेषां स्यादुचितं लिङ्गं स्वयोग्यव्रतधारिणाम्। एकशाटकधारित्वं संन्यासमरणावधि।१७१। स्यान्निरामिषभोजित्वं कुलस्त्रीसेवनव्रतम्। अनारम्भवधोत्सर्गो ह्यभक्ष्यापेयवर्जनम्।१७२। =- जो अपनी योग्यतानुसार असि, मषि, कृषि व वाणिज्य के द्वारा अपनी आजीविका करते हैं, ऐसे सदृष्टि द्विजों को वह यज्ञोपवीत धारण करना चाहिए।
- जिस कुल में दोष लग गया हो ऐसा पुरुष भी जब राजा आदि (समाज) की सम्मति से अपने कुल को शुद्ध कर लेता है, तब यदि उसके पूर्वज दीक्षा धारण करने के योग्य कुल में उत्पन्न हुए हों तो उसके पुत्र-पौत्रादि सन्तति के लिए यज्ञोपवीत धारण करने की योग्यता का कहीं निषेध नहीं है।१६८-१६९।
- जो दीक्षा के अयोग्य कुल में उत्पन्न हुए हैं तथा नाचना, गाना आदि विद्या और शिल्प से अपनी आजीविका पालते हैं ऐसे पुरुष को यज्ञोपवीतादि संस्कार की आज्ञा नहीं है।१७०। किन्तु ऐसे लोग यदि अपनी योग्यतानुसार व्रत धारण करें तो उनके योग्य यह चिह्न हो सकता है कि वे संन्यासमरण पर्यन्त एक धोती पहनें।१७१।
- यज्ञोपवीत धारण करने वाले पुरुषों को माँस रहित भोजन करना चाहिए, अपनी विवाहिता कुल-स्त्री का सेवन करना चाहिए, अनारम्भी हिंसा का त्याग करना चाहिए और अभक्ष्य तथा अपेय पदार्थ का परित्याग करना चाहिए।
म. पु./३८/२२ गुणभूमिकृताद् भेदात् क्लृप्तयज्ञोपवीतिनाम्। सत्कारः क्रियते स्मैषां अव्रताश्च बहिःकृताः।२२। = प्रतिमाओं के द्वारा किये हुए भेद के अनुसार जिन्होंने यज्ञोपवीत धारण किये हैं, ऐसे इन सबका भरत ने सत्कार किया। शेष अव्रतियों को वैसे ही जाने दिया।२२। (म. गु./४१/३४)।
दे. संस्कार/२/२ में उपनीति क्रिया [गर्भ से आठवें वर्ष में बालक की उपनीति (यज्ञोपवीत धारण) क्रिया होती है।]
- चारित्र भ्रष्ट ब्राह्मणों का यज्ञोपवीत पाप सूत्र कहा है
म. पु./२९/११८ पापसूत्रानुगा यूयं न द्विजा सूत्रकण्ठकाः। सन्मार्गकण्टकास्तीक्ष्णाः केवलं मलदूषिताः।११८। = आप लोग तो गले में सूत्र धारणकर समीचीन मार्ग में तीक्ष्ण कण्टक बनते हुए, पाप रूप सूत्र के अनुसार चलने वाले, केवल मल से दूषित हैं, द्विज नहीं हैं।११८।
म. पु./४१/५३ पापसूत्रधरा धूर्ताः प्राणिमारणतत्पराः। वर्त्स्यद्युगे प्रवर्त्स्यन्ति सन्मार्गपरिपन्थिनः।५३। = (भरत महाराज के स्वप्न का फल बताते हुए भगवान् की भविष्यवाणी) पाप का समर्थन करने वाले अथवा पाप के चिह्न स्वरूप यज्ञोपवीत को धारण करने वाले, प्राणियों को मारने में सदा तत्पर रहने वाले ये धूर्त ब्राह्मण आगामी युग में समीचीन मार्ग के विरोधी हो जायेंगे।५३।
- अन्य सम्बन्धित विषय
- उत्तम कुलीन गृहस्थों को यज्ञोपवीत अवश्य धारण करना चाहिए।−दे. संस्कार/२।
- द्विजों या सद्ब्राह्मणों की उत्पत्ति का इतिहास।−दे. वर्णव्यवस्था ।
यति−चा. सा./४६/४ यतयः उपशमक्षपकश्रेण्यारूढा भण्यन्ते। = जो उपशम श्रेणी वा क्षपक श्रेणी में विराजमान हैं, उन्हें यति कहते हैं। (प्र. सा./ता. वृ./२४९/३४३/१६); (का. अ./पं. जयचन्द/४८६)।
प्र. सा./ता. वृ./६९/९०/१४ इन्द्रियजयेन शुद्धात्मस्वरूपप्रयत्नपरो यतिः। = जो इन्द्रिय जय के द्वारा अपने शुद्धात्म स्वरूप में प्रयत्नशील होता है उसको यति कहते हैं।
दे. साधु/१ (श्रमण, संयत, ऋषि, मुनि, साधु, वीतराग, अनगार, भदंत, दान्त, यति ये एकार्थवाची हैं।)
मू. आ./भाषा/८८६ चारित्र में जो यत्न करे वह यति कहा जाता है।