वातसल्य
From जैनकोष
साधर्मी जनों के प्रति प्रेम-भाव । यह सम्यग्दर्शन का एक अंग तथा सोलहकारण भावनाओं में एक भावना है । महापुराण 63.320-330, 330, वीरवर्द्धमान चरित्र 6.69
साधर्मी जनों के प्रति प्रेम-भाव । यह सम्यग्दर्शन का एक अंग तथा सोलहकारण भावनाओं में एक भावना है । महापुराण 63.320-330, 330, वीरवर्द्धमान चरित्र 6.69