योगेंदुदेव
From जैनकोष
आप अत्यन्त विरक्त चित्त दिगम्बराचार्य थे । आप अवश्य ही पहले वैदिक मतानुसारी रहे होंगे क्योंकि आपकी कथनशैली में वैदिक मान्यता के शब्द बहुलता से पाये जाते हैं । आपका शिष्य प्रभाकर भट्ट था । इनके सम्बोधनार्थ ही आपने परमात्मप्रकाश नाम का ग्रन्थ रचा था । आपको जाइन्दु, योगीन्दु, योगेन्दु, जोगिचन्द इन नामों से भी पुकारा जाता था । आपने अपभ्रंश व संस्कृत में अनेकों ग्रन्थ लिखे हैं । कृति -
- स्वानुभवदर्पण;
- परमात्मप्रकाश (अप.);
- योगसार (अप.);
- दोहा पाहुड;
- सुभाषित तन्त्र;
- अध्यात्म रत्नसंदोह;
- तत्त्वार्थ टीका (अप.);
- अमृताशीति (अप.);
- निजात्माष्टक (प्रा.);
- नौकार श्रावकाचार (अप.) । नोट− [(प्रथम दो के अतिरिक्त अन्य के सम्बन्ध में निश्चित रूप से नहीं का जा सकता कि इन्हीं योगेन्दु देव की थी या अन्य किन्हीं योगेन्द्र की । समय−ई. श. ६. (ती./२/२४५, २४८) ।]