रत्नत्रय
From जैनकोष
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्यग्चारित्र इन तीन गुणों को रत्नत्रय कहते हैं । इनके विकल्प रूप से धारण करना भेद रत्नत्रय है और निर्विकल्प रूप से धारण करना अभेद रत्नत्रय है । अर्थात् सात तत्त्वों व देव, शास्त्र व गुरु आदि की श्रद्धा, आगम का ज्ञान व व्रतादि चारित्र तो भेद रत्नत्रय है और आत्म - स्वरूप की श्रद्धा, इसी का स्वसंवेदन ज्ञान और इसी में निश्चल स्थिति या निर्विकल्प समाधि अभेद रत्नत्रय है । रत्नत्रय ही मोक्षमार्ग है । भेद रत्नत्रय व्यवहार मोक्षमार्ग और अभेद रत्नत्रय निश्चय मोक्षमार्ग है ।−दे. मोक्षमार्ग ।