सत्यमहाव्रत
From जैनकोष
पाँच महाव्रतों में दूसरा महाव्रत । राग द्वेष मोहपूर्वक परतापकारी वचनों का त्याग करके हित-मित और प्रियवचन बोलना सत्य महाव्रत है । इसकी पाँच भावनाएं होती है― क्रोध, लोभ, भय और हास्य विरति तथा प्रशस्त वचन का बोलना । इसे मुनि पालते हैं । महापुराण 20.159-162, हरिवंशपुराण - 2.118, 9.84, 58.119