रहस्य
From जैनकोष
ध. १/१, १, १/४४/४ रहस्यमन्तरायः, तस्य शेषघातित्रितयविनाशाविनाभाविनो भ्रष्टबीजवन्निःशक्तीकृता घातिकर्मणो.... । = रहस्य अन्तराय कर्म को कहते हैं । अन्तरायकर्म का शेष नाश तीन घातियाकर्मों के नाश का अविनाभावी है और अन्तरायकर्म के नाश होने पर अघातिया कर्म भ्रष्ट बीज के समान निःशक्त हो जाते हैं ।