स्तेयानंद
From जैनकोष
रौद्रध्यान के चार भेदों में एक भेद । प्रमादपूर्वक दूसरे के धन को बलात् हरने का अभिप्राय रखना या उसमें हर्षित होना स्तेयानंद है । महापुराण 21.42-43, 51, हरिवंशपुराण - 56.19,हरिवंशपुराण - 56.24
रौद्रध्यान के चार भेदों में एक भेद । प्रमादपूर्वक दूसरे के धन को बलात् हरने का अभिप्राय रखना या उसमें हर्षित होना स्तेयानंद है । महापुराण 21.42-43, 51, हरिवंशपुराण - 56.19,हरिवंशपुराण - 56.24