गोत्रकर्म
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
धवला 6/1, 9-1, 11/13/7 गमयत्युच्चनीचकुलमिति गोत्रम् । उच्चनीचकुलेसु उप्पादओ पोग्गलक्खंधो मिच्छत्तदि-पच्चएहि जीवसंबद्धो गोदमिदि उच्चदे । = जो उच्च और नीच कुल को ले जाता है, वह गोत्रकर्म है । मिथ्यात्व आदि बंधकारणों के द्वारा जीव के साथ संबंध को प्राप्त एवं उच्च और नीच कुलों में उत्पन्न कराने वाला पुद्गलस्कंध ‘गोत्र’ इस नाम से कहा जाता है ।
देखें वर्ण व्यवस्था - 1।
पुराणकोष से
उच्च और नीच कुल में पैदा करने वाला और उच्च और नीच व्यवहार का कारण कर्म । इसकी उत्कष्ट स्थिति बीस सागर और जघन्य स्थिति आठ मुहूर्त होती है । हरिवंशपुराण - 3.98, 58.218, वीरवर्द्धमान चरित्र 16.157-159