अवगाहना
From जैनकोष
जीवोंके शरीरकी ऊँचाई लंबाई आदिको अवगाहना कहते हैं। इस अधिकारमें जघन्य व उत्कृष्ट अवगाहनावाले जीवोंका विचार किया गया है।
1. अवगाहना निर्देश
1. अवगाहनाका लक्षण
2. उत्कृष्ट अवगाहनावाले जीव अंतिम द्वीप सागरमें ही पाये जाते हैं।
3. विग्रह गतिमें जीवोंकी अवगाहना।
4. जघन्य अवगाहना तृतीय समयवर्ती निगोदमें ही संभव है।
• सूक्ष्म व स्थूल पदार्थोंकी अवगाहना विषयक। देखें सूक्ष्म - 3।
2. अवगाहना संबंधी प्ररूपणाएँ
1. नरक गति संबंधी प्ररूपणा
2. तिर्यंच गति संबंधी प्ररूपणा
1-2 एकेंद्रियादि तिर्यंचोंकी जघन्य व उत्कृष्ट अवगाहना
3. पृथिवी कायिकादिकी जघन्य व उत्कृष्ट अवगाहना
4. सम्मूर्च्छन व गर्भज जलचर थलचर आदिकी अवगाहना
• महामत्स्यकी अवगाहना की विशेषताएँ-देखें संमूर्च्छन
5. जलचर जीवोंकी उत्कृष्ट अवगाहना
6. चौदह जीवसमासोंकी अपेक्षा अवगाहनायंत्र व मत्स्यरचना
3. मनुष्य गति संबंधी प्ररूपणा
1-2. भरतादि क्षेत्रों, कर्म भोगभूमियों व सुषमादि कालोंकी अपेक्षा अवगाहना
• तीर्थंकरोंकी अवगाहना-देखें तीर्थंकर - 5
• शलाका पुरुषोंकी अवगाहना-देखें शलाका पुरुष
4. देव गति संबंधी प्ररूपणा
1-3. भवनवासी, व्यंतर व ज्योतिषी देवोंकी अवगाहना
4. कल्पवासी देवोंकी अवगाहना
• अवगाहना विषयक संख्या व अल्पबहुत्व प्ररूपणाएँ -देखें वह वह नाम
1. अवगाहना निर्देश
1. अवगाहनाका लक्षण
सर्वार्थसिद्धि 10/1/472/11 आत्माप्रदेशव्यापित्वमवगाहनम्। तद्द्विविधम् उत्कृष्टजघन्यभेदात्।
= आत्मप्रेदेशमें व्याप्त करके रहना, उसका नाम अवगाहना है। वह दो प्रकारकी है-जघन्य और उत्कृष्ट।
2. उत्कृष्ट अवगाहना वाले जीव अंतिम द्वीप सागरमें ही पाये जाते हैं।
धवला 4/1,3,2/33/4 सयंपहपव्वयपरभागट्ठियजीवाणमोगाहणा महल्लेत्ति जाणावणसुत्तमेतत्। सयंपहणगिंदपव्वदस्स परदो जहण्णोगाहणा वि जीवा अत्थि त्ति चे ण मूलग्गसयासं काऊण अद्धं कदे वि संखेज्जघणंगुलदंसणादो।
= स्वयंप्रभ पर्वतके परभागमें स्थित जीवोंकी अवगाहना सबसे बड़ी होती है, इस बातका ज्ञान करानेके लिए यह गाथा सूत्र है। प्रश्न-स्वयंप्रभनगेंद्र पर्वतके उस और जघन्य अवगाहनावाले भी जीव पाये जाते हैं। उत्तर-नहीं, क्योंकि, जघन्य अवगाहनारूपमूल अर्थात् आदि और उत्कृष्ट अवगाहनारूप अंत, इन दोनोंको जोड़कर आधा करनेपर भी संख्यात घनांगुल देखे जाते हैं।
3. विग्रह गतिमें जीवोंकी अवगाहना
धवला 4/1,3,2/30/2 विग्गहगदीए उप्पण्णाणं उजुगदीए उप्पणपढमसमयओगाहणाए समाणा चेव ओगाहणा भवदि। णवरि दोण्हमोगाहणाणं संठाणे समाणत्तणियमो णत्थि। कुदो। आणुपुव्विसंठाणणामकम्मेहि जणिदसंठाणाणमेगत्तविरोधा।
= विग्रहगतिसे उत्पन्न हुए जीवोंके ऋजुगतिसे उत्पन्न जीवोंके प्रथम समयमें होनेवाली अवगाहना के समान ही अवगाहना होती है विशेषता केवल इतनी है कि दोनों अवगाहनाओंके आकारमें समानता का नियम नहीं है, क्योंकि आनुपूर्वी नाम कर्म उदयसे उत्पन्न होनेवाले और संस्थान नाम कर्मके उदयसे उत्पन्न होनेवाले संस्थानोंके एकत्वका विरोध है। (विग्रह गतिमें जीवोंका आकार आनुपूर्वी नाम कर्मके उदयसे पूर्व भववाला ही रहता है। वहाँ संस्थान नामकर्मका उदय नहीं है। भव धारण कर लेनेपर संस्थान नामकर्मका उदय हो जाता है, जिसके कारण नवीन आकार बन जाता है-देखें उदय - 4.6.2)
4. जघन्य अवगाहना तृतीय समयवर्ती निगोदमें ही संभव है
धवला 11/4,2,5,20/34/8 पढमसमयआहारयस्स पढमसमयतब्भवत्थस्स जहण्णक्खेत्सामित्तं किण्ण दिज्जदे। ण, तत्थ आयरचउरस्सक्खेत्तागारेण ट्ठिदम्मि ओगाहणाए त्थोवत्ताणुवत्तीदो। ...विदियसमयआहारयविदियसमयतब्भवत्थस्स जहण्णसामित्तं किण्ण दिज्जदे। ण तत्थ समचउरससरूवेण जीवपदेसाणमवट्ठणादो। विदियसमए विक्खंभसमो आयामो जीवपदेसाणं होदि त्ति कुदो णव्वदे। परमगुरूवदेसादो। तदीयसमयआहारयस्स तदियसमयतब्भत्थस्स चेव जहण्णवखेत्तसामित्तं किमट्ठं दिज्जदे। ण एस दोसो, चउरंसखेत्तस्स चत्तारि वि कोणे संकोड्यि वट्टुलागारेण जीवपदेसाणं तत्थावट्ठाणदंसणादो।
= प्रश्न-प्रथम समयवर्ती आहारक (अर्थात् ऋजुगतिसे उत्पन्न होनेवाला) और प्रथमसमयवर्ती तद्भवस्थ हुए निगोद जीवके जघन्य क्षेत्रका स्वामीपना क्यों नहीं देते? उत्तर-नहीं, क्योंकि, उस समय आयत चतुरस्र क्षेत्रके आकारसे स्थित उक्त जीवमें अवगाहनाक स्तोकपना बन नहीं सकता। प्रश्न-द्वितीय सम्यवर्ती आहारक और द्वितीय समयवर्ती तद्भवस्थ होनेवाले जीवके जघन्य (क्षेत्रका) स्वामीपना क्यों नहीं देते? उत्तर-नहीं क्योंकि उस समयमें भी जीवप्रदेश समचतुरस्र स्वरूपसे अवस्थित रहते हैं। प्रश्न-द्वितीय समयमें जीवके प्रदेशोंका आयाम उसके विष्कंभके समान होता है यह कैसे कहते हो? उत्तर-परमगुरूके उपदेशसे कहते हैं। प्रश्न-तृतीय समवर्ती आहारक और तृतीय समयवर्ती तद्भवस्थ निगोद जीवके ही जघन्य क्षेत्रका स्वामीपना किस लिए देते हो? उत्तर-या कोई दोष नहीं है, क्योंकि, उस समयमें चतुरस्र क्षेत्रके चारों ही कोनोंको संकुचित करके जीव प्रदेशोंका वर्तुलाकारसे (गोल आकारसे अवस्थान देखा जाता है।
1. अवगाहना संबंधी प्ररूपणाएँ
1. नरक गति संबंधी प्ररूपणा
गणना-1 धनुष=4 हाथ; 1 हाथ=24 अंगुल।
प्रमाण-(मूलाचार 1055-1061) ( सर्वार्थसिद्धि 3/3/207 ) ( तिलोयपण्णत्ति 2/217-170 ) ( राजवार्तिक 3/3/4/164/15 ); ( हरिवंशपुराण 4/295-340 ); ( धवला 4/1,3,5/58-62 ); ( तत्त्वसार 2/136 ); ( त्रिलोकसार 201 ); ( महापुराण 10/94 ); (द्रव्यसंग्रह टीका 35/116/8) धवला 4 के आधार पर-
पटल संख्या | प्रथम पृथ्वी | द्वितीय पृथ्वी | तृतीय पृथ्वी | चतुर्थ पृथ्वी | पंचम पृथ्वी | पष्ठम् पृथ्वी | सप्तम पृथ्वी | ||||||||||||
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
धनुष | हाथ | अंगुल | धनुष | हाथ | अंगुल | धनुष | हाथ | अंगुल | धनुष | हाथ | अंगुल | धनुष | हाथ | अंगुल | धनुष | हाथ | अंगुल | धनुष | |
1 | 0 | 3 | 0 | 8 | 2 | 2-2/11 | 17 | 1 | 10-2/3 | 356 | 2 | 20-4/7 | 75 | - | - | 166 | 2 | 16 | 500 |
2 | 1 | 1 | 8-1/2 | 9 | - | 22-4/11 | 19 | - | 9-1/3 | 40 | - | 17-1/7 | 87 | 2 | - | 208 | 1 | 8 | - |
3 | 1 | 3 | 17 | 9 | 3 | 18-6/11 | 20 | 3 | 8 | 44 | 2 | 13-5/7 | 100 | - | - | 250 | - | - | - |
4 | 2 | 2 | 1-1/2 | 10 | 2 | 14-8/11 | 22 | 2 | 6-2/3 | 49 | - | 10-2/7 | 112 | 2 | - | - | - | - | - |
5 | 3 | - | 10 | 11 | 1 | 10-10/11 | 24 | 1 | 5-1/3 | 53 | 2 | 6-6/7 | 125 | - | - | - | - | - | - |
6 | 3 | 2 | 18-1/2 | 12 | - | 7-1/11 | 26 | - | 4 | 58 | - | 3-3/7 | - | - | - | - | - | - | - |
7 | 4 | 1 | 3 | 12 | 3 | 3-3/11 | 27 | 3 | 2-2/3 | 62 | 2 | - | - | - | - | - | - | - | - |
8 | 4 | 3 | 11-1/2 | 13 | 1 | 23-5/11 | 29 | 2 | 1-1/3 | - | - | - | - | - | - | - | - | - | - |
9 | 5 | 1 | 20 | 14 | - | 19-7/11 | 31 | 1 | - | - | - | - | - | - | - | - | - | - | - |
10 | 6 | - | 4-1/2 | 14 | 3 | 15-9/11 | - | - | - | - | - | - | - | - | - | - | - | - | - |
11 | 6 | 2 | 13 | 15 | 2 | 12 | - | - | - | - | - | - | - | - | - | - | - | - | - |
12 | 7 | - | 22-1/2 | - | - | - | - | - | - | - | - | - | - | - | - | - | - | - | - |
13 | 7 | 3 | 6 | - | - | - | - | - | - | - | - | - | - | - | - | - | - | - | - |
2. तिर्यंचगति संबंधी प्ररूपणा
1. एकेंद्रियादि तिर्यंचों की जघन्य अवगाहना
संकेत-असं.=असंख्यात; सं.=संख्यात
(मूलाचार /1069) ( तिलोयपण्णत्ति/5/318/विस्तार) ( धवला 4/1,3,24-33 ) ( तत्त्वसार/2/145 ) ( गोम्मटसार जीवकांड 94/215 ) - तिलोयपण्णत्ति के आधारपर
क्रम | मार्गणा | जघन्य अवगाहना | Header text |
---|---|---|---|
- | - | - अवगाहना | अपेक्षा |
1 | एकेंद्रिय | घनांगुल/असंख्यात | जन्म के तृतीय समयवर्ती सूक्ष्म लर्ब्ध्याप्त निगोद |
2 | द्विंद्रिय | घनांगुल/संख्यात | अनुंधरी |
3 | त्रींद्रिय | घनांगुल/संख्यात | कुंथु |
4 | चतुरिंद्रिय | उपरोक्तXसंख्यात | काणमक्षिका |
5 | पंचेंद्रिय | उपरोक्तXसंख्यात | तंदुलमच्छ |
2. एकेंद्रियादि तिर्यंचों की उत्कृष्ट अवगाहना
संकेत-यो.=योजन (4 कोश) को.=कोश।
(मूलाचार/1070-1071) ( तिलोयपण्णत्ति/5/315-318 ) ( धवला 4/1,3,2/33-45 ) ( तत्त्वसार/2/142-144) ( गोम्मटसार जीवकांड/95-96/216-221 ) - ( तिलोयपण्णत्ति ) के आधार पर
इंद्रिय | अवगाहना | अपेक्षा | विशेष | ||
---|---|---|---|---|---|
- | लंबाई | चौड़ाई | मोटाई | ||
1 | 1000 योजन | 1 योजन | 1 योजन | कमल | स्वयंभूरमण द्वीप के मध्यवर्ती भाग में उत्पन्न |
2 | 12 योजन | 4 योजन | 1/1\4 योजन | शंख | स्वयंभूरमण समुद्र मध्यवर्ती भाग में उत्पन्न |
3 | 3 कोश | 3/8 कोश | 3/16 कोश | कुंभी या सहस्र पद | स्वयंभूरमण द्वीप के अपरभाग में उत्पन्न |
4 | 1 योजन | 3/4 योजन | 1/2 योजन | भँवरा | स्वयंभूरमण द्वीप के अपरभाग में उत्पन्न |
5 | 1000 योजन | 500 योजन | 250 योजन | महामत्स्य | स्वयंभूरमण समुद्र के मध्यवर्ती भाग में उत्पन्न |
3. पृथ्वी कायिकों आदि की जघन्य व उत्कृष्ट अवगाहना
संकेत-सू.=सूक्ष्म; बा.=बादर; असं.=असंख्यात।
(मूलाचार/1087)।
क्रम | काय | समास | जघन्य | उत्कृष्ट |
---|---|---|---|---|
1 | पृथिवी | सूक्ष्म.बादर. | घनांगुल/असंख्यात | द्रव्यांगुल/असंख्यात |
2 | अप.तेज | सूक्ष्म.बादर. | घनांगुल/असंख्यात | द्रव्यांगुल/असंख्यात |
3 | वायु | सूक्ष्म.बादर. | घनांगुल/असंख्यात | द्रव्यांगुल/असंख्यात |
4. सम्मूर्च्छन्न व गर्भज जलचर, थलचर आदि की उत्कृष्ट अवगाहना
(मूलाचार/1084-1086 ) ( हरिवंशपुराण 5/630 )
क्रम | मार्गणा | सम्मूर्च्छन | गर्भज | ||
---|---|---|---|---|---|
अपर्याप्त | पर्याप्त | अपर्याप्त | पर्याप्त | ||
1 | जलचर | 1 बालिश्त | - | 4-8 धनुष | - |
2 | महामत्स्य | - | योजन 1000X500X250 | - | योजन 500X250X125 |
3 | थलचर | 1 बालिश्त | 4-8 धनुष | 4-8 धनुष | 3 कोश |
4 | नभचर | 1 बालिश्त | 4-8 धनुष | 4-8 धनुष | 4-8 धनुष |
नोट-गर्भजोंकी अवगाहना सर्वत्र सम्मूर्च्छनोंसे आधी जानना
5. जलचर जीवों की उत्कृष्ट अवगाहना
( हरिवंशपुराण 5/630-631 )
स्थान | तीर पर | मध्य में | ||||
---|---|---|---|---|---|---|
लंबाई | चौड़ाई | मोटाई | लंबाई | चौड़ाई | मोटाई | |
लवण समुद्र | 9 योजन | (4½) | (2½) | 18 योजन | (9) | (4½) |
कालोद समुद्र | 18 योजन | (9) | (4½) | 36 योजन | (18) | (9) |
स्वयंभू रमण | 500 योजन | (250) | (125) | 1000 | 500 | 250 |
6. चौदह जीव समासों की अपेक्षा अवगाहना यंत्र
संकेत :- सू = सूक्ष्म; बा = बादर; प = पर्याप्त; अप. = अपर्याप्त; आ./असं. = आवलीका असंख्यातवाँ भाग; पल्य/असं. = पल्य\असंख्यात
पृ. = पृथ्वी; ज. = जघन्य; X = पूर्वस्थान+पूर्वस्थान\आ./असं.
* = पूर्व स्थान+पूर्वस्थान\पल्य/असं.
प्रमाण :- (मूलाचार 1087); ( तिलोयपण्णत्ति 5/318 विस्तार) ( गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/97-101/223-243 )
कुल स्थान = 64
स्थान=5 | स्थान=6 | स्थान=5 | स्थान=5 | स्थान=6 | स्थान=5 | स्थान=5 | स्थान=5 | स्थान=5 | स्थान=6 | स्थान=5 | स्थान=6 |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
सूक्ष्म अपर्याप्त जघन्य | बादर अपर्याप्त जघन्य | अपर्याप्त जघन्य | सूक्ष्म पर्याप्त जघन्य | बादर पर्याप्त जघन्य | पर्याप्त जघन्य | अपर्याप्त उत्कृष्ठ | पर्याप्त उत्कृष्ठ | सूक्ष्म अपर्याप्त उत्कृष्ठ | बादर अपर्याप्त उत्कृष्ठ | सूक्ष्म पर्याप्त उत्कृष्ठ | बादर पर्याप्त उत्कृष्ठ |
सूक्ष्म निगोद 1 | बादर वात=6 | अप.प्रत्येक 12 | सूक्ष्म निगोद 17 | बादर वात 32 | अप्र.प्रत्येक 50 | तेंद्रिय=55 | तेंद्रिय 60 | Example | Example | Example | Example |
सूक्ष्म वात 2 | बादर तेज=7 | बेइंद्री=13 | सूक्ष्म वात=20 | बादर तेज=35 | बेंद्रिय 51 | चौंद्रिय=56 | चौंद्रिय 61 | Example | Example | Example | Example |
सूक्ष्म तेज 3 | बादर अप=8 | तेइंद्रि=14 | सूक्ष्म तेज 23 | बादर अप=38 | तेंद्रिय=52 | बेंद्रिय=57 | बेंद्रिय=62 | Example | Example | Example | Example |
सूक्ष्म अप 4 | बादर पृथ्वी=9 | चतुरेंद्रि=15 | सूक्ष्म अप=26 | बादर पृथ्वी=41 | चौंद्रिय=53 | अप्रतिष्ठित=58 | अप.प्रत्येक=63 | Example | Example | Example | Example |
सूक्ष्म पृथ्वी 5 | बादर निगोद=10 | पंचेंद्रिय=16 | सूक्ष्म पृथ्वी=28 | बादर निगोद=44 | पंचेंद्रिय=54 | पंचेंद्रिय=59 | पंचेंद्रिय=64 | Example | Example | Example | Example |
- | बादर प्र.प्रत्येक=11 | - | - | प्र.प्रत्येक=47 | - | - | - | Example | Example | Example | Example |
प्रतिस्थान वृद्धि | प्रतिस्थान वृद्धि | प्रति स्थान वृद्धि | प्रति स्थान वृद्धि | प्रति स्थान वृद्धि | प्रति स्थान वृद्धि | प्रति स्थान वृद्धि | प्रति स्थान वृद्धि | Example | Example | Example | Example |
क्रमशः आवली/असंख्यातवाँ भाग | पल्य\असंख्यात | क्रमशः पल्य/असंख्यातवाँ भाग | क्रमशः X | क्रमशः * | क्रमशः पल्य\संख्यात | क्रमशः पल्य\संख्यात | क्रमशः पल्य\संख्यात | Example | Example | Example | Example |
―
क्रमशः पल्य/असं. - - क्रमशः* ― ― ―
स्थान=5 स्थान=6 स्थान=5 स्थान=6
(सू.अप.उ.) (बा.अप.उ.) (सू.प.उ.) (बा.प.उ.)
निगोद=18 वात=33 निगोद=14 वात=34
वात=21 तेज=36 वात=22 तेज=37
तेज=24 अप्=39 तेज=25 अप=40
अप=27 पृथ्वी=42 अप्=28 पृथ्वी=43
पृथ्वी=30 निगोद=45 पृथ्वी=31 निगोद=46
प्रति स्थानवृद्धि प्र.प्रत्येक=48 प्रतिस्थान वृद्धि प्र.प्रत्येक=49
- प्रतिस्थान वृद्धि - प्रतिस्थान वृद्धि
क्रमशः X क्रमशः* - प्रतिस्थान वृद्धि
- - क्रमशः X क्रमशः*
6. चौदह जीव समासों की अपेक्षा अवगाहना की मत्स्य रचनाका यंत्र
नोट व संकेत :- 1. रचनाका क्रम (देखो पहले पृष्टपर)
2. एक स्थानकी दो बिंदी=उस स्थानमें जघन्यसे उत्कृष्ट पर्यंत अवगाहनाके सर्वभेद
3. *दो दो स्थानोंमें बिंदी=प्रति अवगाहना जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट स्थान व अवक्तव्य वृद्धि
4. दो बिंदी के बीच का अंतराल=प्रति अवगाहना स्थान अवक्तव्यवृद्धि।
5. दो. बिंदियों के बीच के स्थान=मध्यमस्थान
( तिलोयपण्णत्ति 5/318 विस्तार); ( गोम्मटसार जीवकांड/ जी.प्र/112/274)
(Kosh1_P000180_Fig0013)
3. मनुष्य गति संबंधी प्ररूपणा
1. भरतादि क्षेत्रों व कर्मभोग भूमिकी अपेक्षा अवगाहना
गणना-2000 धनुषका 1 कोश
प्रमाण -1. (मू.आ.1063,1087); 2. ( सर्वार्थसिद्धि 3/29-31 ); 3. ( तिलोयपण्णत्ति 4/ गा.नं.); 4. ( राजवार्तिक 3/29-31/192 ); 5. ( धवला 4/1,3,2/45 ); 6. ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो 11/54 ); 7. ( तत्त्वसार 2/137 )
प्रमाण अधिकरण अवगाहना
तिलोयपण्णत्ति गा अन्यप्रमाण क्षेत्र निर्देश भूमि निर्देश जघन्य उत्कृष्ट
- 2,5,7 भरत-ऐरावत कर्मभूमि 3/1\2 525 धनु
404 1,2 हैमवत हैरण्यवत् जघन्यभोग 525,500धनु 2000धनु
396 1,2 हरि-रम्यक मध्यमभोग 2000धनु 4000धनु
2256 2,5 विदेह उ.कर्मभूमि 500धनु 500धनु
335 1,2 देव व उत्तर कुरु उत्तम भोग 4000धनु 6000धनु
2513 6 अंतर्द्वीप कुभोग 500धनु 2000धनु
2. सुषमा आदि छः कालोंकी अपेक्षा अवगाहना
अवसर्पिणी उत्सर्पिणी
काल निर्देश प्रमाण जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट
- तिलोयपण्णत्ति/4 अवगाह अवगाहना तिलोयपण्णत्ति/4 अव. तिलोयपण्णत्ति/4 अव
- गा. - - गा. - गा.
सुषमासुषमा 335 4000धनु 6000धनु 1602 अवसर्पिणी वत् 1604 अवसर्पिणीवत्
सुषमा 396 2000धनु 4000धनु 1600 अवसर्पिणी वत् 1601 अवसर्पिणीवत्
सुषमादुषमा 404 525धनु 2000धनु 1597 अवसर्पिणीवत् 15989 अवसर्पिणीवत्
दुषमासुषमा 1277 7हाथ 525 1576 अवसर्पिणीवत् 1595 अवसर्पिणीवत्
दुषमा 1475 3 या 3/1\2हाथ 7 हाथ 1568 अवसर्पिणीवत् - अवसर्पिणीवत्
दुषमादुषमा 1536 1 3/1\2 3या 3/1\2 1564 अवसर्पिणीवत् - अवसर्पिणीवत्
4. देवगति संबंधी प्ररूपणा
1. भगवनवासी देवोंकी अवगाहना
(मू.आ. 1062) ( तिलोयपण्णत्ति 3/176 ) ( हरिवंशपुराण 4/68 ) ( धवला 4/1,3,2/ गा.18/7) ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो 11/139 ) ( त्रिलोकसार 249 )
क्रम नाम अवगाहना
1 असुरकुमार 25 धनुष
2 विद्युतकुमार 10 धनुष
3 सुपर्णकुमार 10 धनुष
4 अग्निकुमार 10 धनुष
5 वातकुमार 10 धनुष
6 उदधिकुमार 10 धनुष
7 द्वीपकुमार 10 धनुष
8 दिक्कुमार 10 धनुष
9 स्तनितकुमार 10 धनुष
10 नागकुमार 10 धनुष
2. व्यंतर देवोंकी अवगाहना
1. (मू.आ.1062); 2. ( तिलोयपण्णत्ति 4/76,1652,1672 ) 3. ( तिलोयपण्णत्ति 6/98 ); 4. ( हरिवंशपुराण 4/68 ); 5. ( धवला 4/1,3,2/ गा.18/79); 6. ( धवला 7/2,6,17/ गा.1/319); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो 11/139 )
प्रमाण सं.- 1,3-6 (किन्नर आदि आठ प्रकार व्यंतरों की अवगाहना 10 धनुष है।)
प्रमाण सं.- 2 (मध्य लोकके कूटों व कमलों आदिके स्वामी देव देवियोंकी अवगाहना भी 10 धनुष बतायी गयी है।)
3. ज्योतिषी देवोंकी अवगाहना
(मू.आ.1062) ( तिलोयपण्णत्ति 7/618 ) ( हरिवंशपुराण 4/68 ) ( धवला 4/1,3,2 ) (गा.18/79) ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो 11/139 ) ( त्रिलोकसार 249 ) (सर्व ज्योंतिष देवोंकी अवगाहना 7 धनुष है)
4. कल्पवासी देवोंकी अवगाहना
1. (मू.आ.1064-1068); 2. ( सर्वार्थसिद्धि 4/21/252 ); 3.( तिलोयपण्णत्ति 8/640 ); 4.( राजवार्तिक 4/21/8/236/26 ); 5. ( हरिवंशपुराण 4/69 ); 6.( धवला 7/2,6,17/2-6/319-320 ); 7. ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो 11/346-352 ); 8. ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो 11/253 ); 9. ( त्रिलोकसार 543 ); 10 ( तत्त्वसार 2/139-141 )
प्रमाण सं. नाम अवगाह विशेषता
सं. 3 के बिना सर्व सौधर्म-ईशान 7 हाथ -
सं. 3 व 8 के बिनासर्व सनत्कुमार-माहेंद्र 6 हाथ -
सं. 3 व 8 के बिना सर्व ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर 5 हाथ -
केवल सं.3 लौकांतिक 5 हाथ -
सं. 3 व 8 के बिना सर्व लांतव कापिष्ठ 5 हाथ प्रमाणनं. 9 के अनुसार 1/2 हाथ कम
सं. 3 व 8 के बिना सर्व शुक्र-महाशुक्र 4 हाथ प्रमाणनं. 9 के अनुसार 1/2 हाथ कम
सं. 3 व 8 के बिना सर्व शतार-सहस्रार 4 हाथ प्रमाणनं. 9 के अनुसार 1/2 हाथ कम
सं. 3 व 8 के बिना सर्व आनत-प्राणत 3/1\2 हाथ प्रमाणनं. 9 के अनुसार 1/2 हाथ कम
सं. 3 व 8 के बिना सर्व आरण-अच्युत 3 हाथ प्रमाणनं. 9 के अनुसार 1/2 हाथ कम
सं. 3 व 8 के बिना सर्व अधोग्रैवेयक 2/1\2 हाथ प्रमाणनं. 9 के अनुसार 1/2 हाथ कम
सं. 3 व 8 के बिना सर्व मध्य ग्रैवेयक 2 हाथ प्रमाणनं. 9 के अनुसार 1/2 हाथ कम
सं. 3 व 8 के बिना सर्व उपरिम ग्रैवेयक 1/1\2 हाथ प्रमाणनं. 9 के अनुसार 1/2 हाथ कम
केवल सं.1 नव अनुदिश 1/1\2 हाथ प्रमाण नं.9 के अनुसार 1/2 हाथ कम
3 व 8 के बिना सर्व पंच अनुत्तर 1 हाथ प्रमाण नं.9 के अनुसार 1/2 हाथ कम
• अवगाहना प्रकरणमें प्रयुक्त मानोंका अर्थ देखें गणित - I.1.6