अहिंसा महाव्रत
From जैनकोष
प्रथम महाव्रत । काय, इंद्रियाँ, गुणस्थान, जीवस्थान, कुल, और आयु के भेद तथा योनियों के नाना विकल्पों का आगमरूपी चक्षु के द्वारा अच्छी तरह अवलोकन करके बैठने-उठने आदि क्रियाओं मे छ: काय के जीवों के वध-बंधन आदि का त्याग करना । इस महाव्रत की स्थिरता के लिए पाँच भावनाएं होती है वे हैं—सम्यक्वचनगुप्ति, सम्यग्ममोगुप्ति, आलोकित-पान-भोजन, ईर्यासमिति और आदान-निक्षेपण समिति । महापुराण 20.161, 34.168-169, हरिवंशपुराण - 2.116-117, 58.117-118, पांडवपुराण 9.84