स्त्रीवेद
From जैनकोष
सर्वार्थसिद्धि/8/9/386/2 यदुदयात्स्त्रैणान्भावान्प्रतिपद्यते स स्त्रीवेद:। = जिसके उदय से स्त्री संबंधी भावों को प्राप्त होता वह स्त्रीवेद है।
धवला 6/1,9-1,24/47/1 जेसिं कम्मक्खंधाणमुदएण पुरुसम्मि आकंखा उप्पज्जइ तेसिमित्थिवेदो त्ति सण्णा। = जिन कर्म स्कंधों के उदय से पुरुष में आकांक्षा उत्पन्न होती है उन कर्मस्कंधों की ‘स्त्रीवेद’ यह संज्ञा है।
अधिक जानकारी के लिये देखें स्त्री ।