स्थितिसत्त्वापसरण
From जैनकोष
स्थिति सत्त्वापसरण निर्देश
समयसार / आत्मख्याति गाथा 427-428/506 केवल भाषार्थ-
"मोहादिक का क्रम लिए जो क्रमकरण (देखें क्रमकरण ) रूप बंध भया, तातै परै इस ही क्रम लिये तितने ही संख्यात हजार स्थिति बंध भये असंज्ञी पंचेंद्रिय समान (सागरोपमलक्षणपृथक्त्व) स्थिति सत्त्व है। बहुरि तातैं परै जैसे-जैसे मोहनीयादिक का क्रमकरण पर्यंत स्थिति बंधका व्याख्यान किया तैसे ही स्थिति सत्त्व का होना अनुक्रम तैं जानना। तहाँ एक पल्य स्थिति पर्यंत पल्य का संख्यातवाँ भागमात्र, तातैं दूरापकृष्टि पर्यंत पल्य का संख्यातवां भागमात्र, तातैं संख्यात हजार वर्ष स्थिति पर्यंत पल्यका असंख्यातवां बहुभाग मात्र आयाम लिये जो स्थिति बंधापसरण तिनिकरि स्थिति बंधका घटना कहा था, तैसे ही इहाँ तितने आयाम लिये स्थिति कांडक निकरिस्थितिसत्त्व का घटना हो है। बहुरि तहाँ संख्यात हजार स्थिति बंधका व्यतीत होना कहा तैसे इहाँ भी कहिए है, वा तहाँ तितने स्थिति कांडनिका व्यतीत होना कहिए। जातैं स्थिति बंधापसरण और स्थितिकांडोत्करणका काल समान है। बहुरि तहाँ स्थिति बंध जहाँ कह्या था यहाँ स्थिति सत्त्व तहाँ कहना। बहुरि अल्प बहुत्व त्रैराशिक आदि विशेष बंधापसरणवत् ही जानना। सो स्थिति सत्त्व का क्रम कहिए - प्रत्येक संख्यात हजार कांडक गये क्रमतै असंज्ञी पंचेंद्रिय, चौइंद्रिय, तेइंद्रिय, बेइंद्रिय, एकेंद्रियनिकै स्थिति बंधकै समान कर्मनि की स्थिति सत्त्व हजार, सौ पचास, पच्चीस, एक सागर प्रमाण हो है। बहुरि संख्यात स्थिति कांड के भये बीसयानि (नाम गोत्र) का एक पल्य : तीसियनि (ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, अंतराय) का ड्योढ पल्य : मोह का दोय पल्य स्थिति सत्त्व ही है। 1. तातै परै पूर्व सत्त्व का संख्यात बहुभागमात्र एक कांडक भये बीसयनि का पल्य के संख्यात भागमात्र स्थिति सत्त्व भया तिस कालविषैं वीसयनिकेतै तीसयनि का संख्यातसगुणा मोह का विशेष अधिक स्थिति सत्त्व भया। 2. बहुरि इस क्रमतै संख्यात हजार स्थिति कांडक भये तीसयनि का (एक) पल्यमात्र, मोह का त्रिभाग अधिक पल्य (1/1\3) मात्र स्थिति सत्त्व भया। ताके परै एक कांडक भये तीसयनि का भी पल्य के संख्यातवें भागमात्र स्थिति सत्त्व हो है। तिस समय बीसयनि का स्तोक तातैं तीसयनि का संख्यातगुणा तैते मोह का संख्यातगुणा स्थिति सत्त्व हो है। 3. बहुरि इस क्रम लिये संख्यात स्थितिकांडक भये मोह का पल्यमात्र स्थिति सत्त्व हो है। बहुरि एक कांडक भये मोह का पल्यमात्र स्थिति सत्त्व हो है। बहुरि एक कांडक भये माह का भी पल्य के संख्यातवें भाग मात्र स्थिति सत्त्व हो है। तीहिं समय सातों कर्मनिका स्थिति सत्त्व पल्य के संख्यातवें भागमात्र भया। तहाँ वीसयनिका स्तोक, तीसयनिका संख्यातगुणा तातैं मोहका संख्यातगुणा स्थिति सत्त्व हो है। 4. तातैं परै इस क्रम लिये संख्यात हजार स्थितिकांडक भये बीसयनिका स्थितिसत्त्व दूरापकृष्टिकौ उल्लंघि पल्य के असंख्यातवें भागमात्र भया। तिस समय बीसयनिका स्तोक तातैं तीसयनिका असंख्यात गुणा तातैं मोह का संख्यातगुणा स्थिति सत्त्व हो है। 5. तातैं परै इस क्रम लिये संख्यात हजार स्थितिकांडक भये तीसयनिका स्थिति सत्त्व दूरापकृष्टिकौ उल्लंघि पल्य के असंख्यातवें भागमात्र भया। तब सर्व ही कर्मनिका स्थितिसत्त्व पल्य के असंख्यातवें भागमात्र भया। तहाँ बीसयनिका स्तोक तातैं तीसयनिका असंख्यातगुणा तातैं मोह का असंख्यातगुणा स्थितिसत्त्व हो है। 6. बहुरि इस क्रमकरि संख्यात हजार स्थितिकांडक भये नाम-गोत्रका स्तोक तातैं मोहका असंख्यात गुणा तातैं तीसयनिका असंख्यातगुणा स्थितिसत्त्व हो है। 7. बहुरि इस क्रम लिये संख्यात हजार स्थितिकान्डक भये मोह का स्तोक तातैं बीसयनिका असंख्यातगुणा तातैं तीसयनिका असंख्यातगुणा स्थितिसत्त्व ही है। 8. बहुरि इस क्रम लिये संख्यात हजार स्थिति कांडक भये मोह का स्तोक तातैं बीसयनिका असंख्यातगुणा तातैं तीन घातियानि का असंख्यातगुणा तातैं वेदनीय का असंख्यातगुणा स्थितिसत्त्व हो है। 9. बहुरि इस क्रम लिये संख्यात हजार स्थितिकांडक भये मोहका स्तोक, तातैं तीन घातियानिका असंख्यातगुणा तातैं नाम-गोत्रका असंख्यातगुणा तातैं वेदनीय का विशेष अधिक स्थितिसत्त्व हो है। 10. ऐसे अंतविषैं नामगोत्रतैं वेदनीय का स्थितिसत्त्व साधिक भया तब मोहादिकैं क्रम लिये स्थिति सत्त्वका क्रमकरण भया ॥427॥ बहुरि इस क्रमकरणतैं परैं संख्यात हजार स्थितिबंध व्यतीत भये जो पल्य का असंख्यातवाँ भागमात्र स्थितिहोइ ताकौं होतै संतै तहाँ असंख्यात समय प्रबद्धनिकी उदीरणा हो है। इहाँ तैं पहिले अपकर्षण किया द्रव्यकौ उदयावलो विषैं देनेके अर्थि असंख्यात लोकप्रमाण भागहार संभवै था। तहाँ समयप्रबद्धके असंख्यातवाँ भाग मात्र उदीरणा द्रव्य था। अब तहाँ पल्य का असंख्यातवाँ भागप्रमाण भागहार होनेतैं असंख्यात समयप्रबद्ध मात्र उदीरणाद्रव्य भया ॥428॥
अधिक जानकारी के लिये देखें अपकर्षण - 3.2।