वय
From जैनकोष
प्र. सा./ता. वृ./२०३/२७६/९ शुद्धात्मसंवित्तिविनाशकारिवृद्धवालयौवनोद्रेकजनितबुद्धिवैकल्परहितं वयश्चेति = शुद्ध आत्मा के संवेदन की विनाश करने वाली वृद्ध, बालक व यौवन अवस्था के उद्रेक से उत्पन्न होने वाली बुद्धि की विकलता से रहित वय होती है ।