वरवीर
From जैनकोष
म.पु./सर्ग/श्लोक - ‘पूर्व भव सं. ७ में लोलुप नामक हलवाई था । (८/२३४) । पूर्व भव सं. ६ में नकुल हुआ । (८/२४१) । पूर्वभव सं. ५ में उत्तरकुरु में मनुष्य हुआ । (९/९०) । पूर्व भव सं. ४ में ऐशानस्वर्ग में मनोरथ नामक देव हुआ । (९/१८७) । पूर्व भव सं. ३ में प्रभंजन राजा का पुत्र प्रशान्त मदन हुआ । (१०/१५२) । पूर्व भव सं. २ में अच्युत स्वर्ग में देव हुआ । (१०/१७२) । पूर्व वाले भव में अपराजित स्वर्ग में अहमिन्द्र हुआ । (११/१०)। अथवा सर्वार्थसिद्धि में अहमिन्द्र हुआ । (११/१६०) और वर्तमान भव में वरवीर हुआ । (१६/३) । जिसका अपरनाम जयसेन भी था । (४७/३७६) । [युगपत् समस्त भवों के लिए दे. (४७/३७६-३७७)] । यह ॠषभदेव के पुत्र भरत का छोटा भाई था । (१६/३) । भरत द्वारा राज्य माँगने पर दीक्षा ले लो । (३४/१२६) । भरत के मुक्ति जाने के पश्चात् मोक्ष सिधारे । (४७/३९९) ।