वर्द्धमान
From जैनकोष
- प्र.सा./ता.वृ./१/३/१६ अब समन्तादृद्धं ‘वृद्धं’ मानं प्रमाणं ज्ञानं यस्य स भवित वर्द्धमानः । = ‘अव’ अर्थात् समन्तात्, ॠृद्धम् अर्थात् वृद्ध, मान अर्थात् प्रमाण या ज्ञान । अर्थात् हर प्रकार से वृद्ध ज्ञान जिसके होता है ऐसे भगवान् वर्द्धमान हैं ।
- भगवान् महावीर का अपरनाम भी वर्द्धमान है - दे. महावीर ।
- रुचक पर्वत का एक कूट है - दे. लोक/५/१३;
- अवधिज्ञान का एक भेद । - दे. अवधिज्ञान/१ ।