GP:प्रवचनसार - गाथा 138 - अर्थ
From जैनकोष
[समय: तु] काल तो [अप्रदेश:] अप्रदेशी है, [प्रदेशमात्रस्य द्रव्यजातस्य] प्रदेशमात्र पुद्गल-परमाणु [आकाशद्रव्यस्य प्रदेशं] आकाश द्रव्य के प्रदेश को [व्यतिपतत:] मंद गति से उल्लंघन कर रहा हो तब [सः वर्तते] वह वर्तता है अर्थात् निमित्तभूततया परिणमित होता है ॥१३८॥