GP:प्रवचनसार - गाथा 159 - अर्थ
From जैनकोष
[अन्यद्रव्ये] अन्य द्रव्य में [मध्यस्थ:] मध्यस्थ [भवन्] होता हुआ [अहम्] मैं [अशुभोपयोगरहित:] अशुभोपयोग रहित होता हुआ तथा [शुभोपयुक्त: न] शुभोपयुक्त नहीं होता हुआ [ज्ञानात्मकम्] ज्ञानात्मक [आत्मकं] आत्मा को [ध्यायामि] ध्याता हूँ ।