GP:प्रवचनसार - गाथा 162 - अर्थ
From जैनकोष
[अहं पुद्गलमय: न] मैं पुद्गलमय नहीं हूँ और [ते पुद्गला:] वे पुद्गल [मया] मेरे द्वारा [पिण्ड न कृता:] पिण्डरूप नहीं किये गये हैं, [तस्मात् हि] इसलिये [अहं न देह:] मैं देह नहीं हूँ [वा] तथा [तस्य देहस्य कर्ता] उस देह का कर्ता नहीं हूँ ॥