GP:प्रवचनसार - गाथा 177 - अर्थ
From जैनकोष
[स्पर्शै:] स्पर्शों के साथ [पुद्गलाना बंध:] पुद्गलों का बंध, [रागादिभि: जीवस्य] रागादि के साथ जीव का बंध और [अन्योन्यम् अवगाह:] अन्योन्य अवगाह वह [पुद्गलजीवात्मक: भणित:] पुद्गलजीवात्मक बंध कहा गया है ।