GP:प्रवचनसार - गाथा 187.1 - अर्थ
From जैनकोष
तीव्र--अधिक विशुद्धि में शुभ-प्रकृतियों का उत्कृष्ट--तीव्र अनुभाग बन्ध और तीव्र संक्लेश्ता में अशुभ-प्रकृतियों का उत्कृष्ट--तीव्र अनुभाग बन्ध होता है तथा इससे विपरीत परिणामों से सभी प्रकृतियों का जघन्य अनुभाग बन्ध होता है ।