GP:प्रवचनसार - गाथा 199 - अर्थ
From जैनकोष
[जिना: जिनेन्द्रा: श्रमणा:] जिन, जिनेन्द्र और श्रमण (अर्थात् सामान्यकेवली, तीर्थंकर और मुनि) [एवं] इस [पूर्वोक्त ही] प्रकार से [मार्गं समुत्थिता:] मार्ग में आरूढ़ होते हुए [सिद्धा: जाता:] सिद्ध हुए [तेभ्य:] उन्हें [च] और [तस्मै निर्वाण मार्गाय] उस निर्वाणमार्ग को [नमोऽस्तु] नमस्कार हो ।