GP:प्रवचनसार - गाथा 20 - अर्थ
From जैनकोष
[केवलज्ञानिन:] केवलज्ञानी के [देहगतं] शरीर-सम्बन्धी [सौख्यं] सुख [वा पुन: दुःखं] या दुःख [नास्ति] नहीं है, [यस्मात्] क्योंकि [अतीन्द्रियत्व जातं] अतीन्द्रियता उत्पन्न हुई है [तस्मात् तु तत् ज्ञेयम्] इसलिये ऐसा जानना चाहिये ॥२०॥