GP:प्रवचनसार - गाथा 200 - अर्थ
From जैनकोष
[तस्मात्] ऐसा होने से (अर्थात् शुद्धात्मा में प्रवृत्ति के द्वारा ही मोक्ष होता होने से) [तथा] इस प्रकार [आत्मानं] आत्मा को [स्वभावेन ज्ञायकं] स्वभाव से ज्ञायक [ज्ञात्वा] जानकर [निर्ममत्वे उपस्थित:] मैं निर्ममत्व में स्थित रहता हुआ [ममतां परिवर्जयामि] ममता का परित्याग करता हूँ ।