GP:प्रवचनसार - गाथा 202 - अर्थ
From जैनकोष
(श्रामण्यार्थी) [बन्धुवर्गम् आपृच्छ्य] बंधु-वर्ग से विदा माँगकर [गुरुकलत्रपुत्रै: विमोचित:] बडों से, स्त्री और पुत्र से मुक्त किया हुआ [ज्ञानदर्शनचारित्रतपोवीर्याचारम् आसाद्य] ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार और वीर्याचार को अंगीकार करके........ ॥२०२॥