GP:प्रवचनसार - गाथा 220
From जैनकोष
ण हि णिरवेक्खो चागो ण हवदि भिक्खुस्स आसयविसुद्धी । (220)
अविसुद्धस्स य चित्ते कहं णु कम्मक्खओ विहिदो ॥236॥
ण हि णिरवेक्खो चागो ण हवदि भिक्खुस्स आसयविसुद्धी । (220)
अविसुद्धस्स य चित्ते कहं णु कम्मक्खओ विहिदो ॥236॥