GP:प्रवचनसार - गाथा 223 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
अब, अनिषिद्ध उपधि का स्वरूप कहते हैं :-
जो उपधि
- सर्वथा बंध का असाधक होने से अनिन्दित है,
- संयत के अतिरिक्त अन्यत्र अनुचित होने से असंयत-जनों के द्वारा अप्रार्थनीय (अनिच्छनीय) है और
- रागादि-परिणाम के बिना धारण की जाने से मूर्च्छादि के उत्पादन से रहित है,