GP:प्रवचनसार - गाथा 224 - अर्थ
From जैनकोष
[अथ] जब कि [जिनवरेन्द्रा:] जिनवरेन्द्रों ने [अपुनर्भवकामिन:] मोक्षाभिलाषी के, [संग: इति] 'देह परिग्रह है' ऐसा कहकर [देहे अपि] देह में भी [अप्रतिकर्मत्वम्] अप्रतिकर्मपना (संस्काररहितपना) [उद्दिष्टवन्त:] कहा (उपदेशा) है, तब [किं किंचनम् इति तर्क:] उनका यह (स्पष्ट) आशय है कि उसके अन्य परिग्रह तो कैसे हो सकता है?