GP:प्रवचनसार - गाथा 225 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
अब, अपवाद के कौन से विशेष (भेद) हैं, सो कहते हैं :-
इसमें जो अनिषिद्ध उपधि अपवाद है, वह सभी वास्तव में ऐसा ही है कि जो श्रामण्य पर्याय के सहकारी कारण के रूप में उपकार करने वाला होने से उपकरण भूत है, दूसरा नहीं । उसके विशेष (भेद) इस प्रकार हैं :-
- सर्व आहार्य रहित सहजरूप से अपेक्षित (सर्व आहार्य रहित) यथाजातरूपपने के कारण जो बहिरंग लिंगभूत हैं ऐसे काय-पुद्गल;
- जिनका श्रवण किया जाता है ऐसे तत्कालबोधक, गुरुद्वारा कहे जाने पर आत्मतत्त्व-द्योतक, सिद्ध उपदेशरूप वचन-पुद्गल; तथा
- जिनका अध्ययन किया जाता है ऐसे, नित्यबोधक, अनादिनिधन शुद्ध आत्मतत्त्व को प्रकाशित करने में समर्थ श्रुतज्ञान के साधनभूत शब्दात्मक सूत्र-पुद्गल; और
- शुद्ध आत्मतत्त्व को व्यक्त करने वाली जो दर्शनादिक पर्यायें, उनरूप से परिणमित पुरुष के प्रति विनीतता का अभिप्राय प्रवर्तित करने वाले चित्र-पुद्गल ।
यहाँ ऐसा तात्पर्य है कि काय की भाँति वचन और मन भी वस्तुधर्म नहीं है ।