GP:प्रवचनसार - गाथा 234 - अर्थ
From जैनकोष
[साधु:] साधु [आगमचक्षु:] आगमचक्षु (आगमरूप चक्षु वाले) हैं, [सर्वभूतानि] सर्वप्राणी [इन्द्रिय चक्षूंषि] इन्द्रिय चक्षु वाले हैं, [देवा: च] देव [अवधिचक्षुषः] अवधिचक्षु हैं [पुन:] और [सिद्धा:] सिद्ध [सर्वत: चक्षुषः] सर्वत:चक्षु (सर्व ओर से चक्षु वाले अर्थात् सर्वात्मप्रदेशों से चक्षुवान्) हैं ।