GP:प्रवचनसार - गाथा 236 - अर्थ
From जैनकोष
[इह] इस लोक में [यस्य] जिसकी [आगमपूर्वा दृष्टि:] आगमपूर्वक दृष्टि (दर्शन) [न भवति] नहीं है [तस्य] उसके [संयम:] संयम [नास्ति] नहीं है, [इति] इस प्रकार [सूत्रं भणति] सूत्र कहता है; और [असंयत:] असंयत वह [श्रमण:] श्रमण [कथं भवति] कैसे हो सकता है?