GP:प्रवचनसार - गाथा 237 - अर्थ
From जैनकोष
[आगमेन] आगम से, [यदि अपि] यदि [अर्थेषु श्रद्धानं नास्ति] पदार्थों का श्रद्धान न हो तो, [न हि सिद्धति] सिद्धि (मुक्ति) नहीं होती; [अर्थान् श्रद्धधानः] पदार्थों का श्रद्धान करने वाला भी [असंयत: वा] यदि असंयत हो तो [न निर्वाति] निर्वाण को प्राप्त नहीं होता ।