GP:प्रवचनसार - गाथा 244 - अर्थ
From जैनकोष
[यदि यः श्रमण:] यदि श्रमण [अर्थेषु] पदार्थों में [न मुह्यति] मोह नहीं करता, [न हि रज्यति] राग नहीं करता, [न एव द्वेषम् उपयाति] और न द्वेष को प्राप्त होता है [सः] तो वह [नियतं] नियम से [विविधानि कर्माणि] विविध कर्मों को [क्षपयति] खपाता है ।