GP:प्रवचनसार - गाथा 261 - अर्थ
From जैनकोष
[प्रकृत वस्तु] प्रकृत वस्तु को [दृट्वा] देखकर (प्रथम तो) [अभ्युत्थानप्रधानक्रियाभि:] अभ्युत्थान आदि क्रियाओं से [वर्तताम्] (श्रमण) वर्तो; [ततः] फिर [गुणात्] गुणानुसार [विशेषितव्य:] भेद करना,—[इति उपदेश:] ऐसा उपदेश है ।