GP:प्रवचनसार - गाथा 273 - अर्थ
From जैनकोष
[सम्यग्विदितपदार्था:] सम्यक् (यथार्थतया) पदार्थों को जानते हुए [ये] जो [बहिस्थमध्यस्थम्] बहिरंग तथा अंतरंग [उपधिं] परिग्रह को [त्यक्त्वा] छोड़कर [विषयेषु न अवसक्ता:] विषयों में आसक्त नहीं हैं, [ते] वे [शुद्धा: इति निर्दिष्टा:] शुद्ध कहे गये हैं ।