GP:प्रवचनसार - गाथा 274 - अर्थ
From जैनकोष
[शुद्धस्य च] शुद्ध (शुद्धोपयोगी) को [श्रामण्यं भणितं] श्रामण्य कहा है, [शुद्धस्य च] और शुद्ध को [दर्शनं ज्ञानं] दर्शन तथा ज्ञान कहा है, [शुद्धस्य च] शुद्ध के [निर्वाणं] निर्वाण होता है; [सः एव] वही (शुद्ध ही) [सिद्ध:] सिद्ध होता है; [तस्यै नम:] उसे नमस्कार हो ।