GP:प्रवचनसार - गाथा 35 - अर्थ
From जैनकोष
[यः जानाति] जो जानता है [सः ज्ञानं] सो ज्ञान है (अर्थात् जो ज्ञायक है वही ज्ञान है), [ज्ञानेन] ज्ञान के द्वारा [आत्मा] आत्मा [ज्ञायक: भवति] ज्ञायक है [न] ऐसा नहीं है । [स्वयं] स्वयं ही [ज्ञानं परिणमते] ज्ञान-रूप परिणमित होता है [सर्वे अर्था:] और सर्व पदार्थ [ज्ञानस्थिता:] ज्ञान-स्थित हैं ॥३५॥