GP:प्रवचनसार - गाथा 36 - अर्थ
From जैनकोष
[तस्मात्] इसलिये [जीव: ज्ञानं] जीव ज्ञान है [ज्ञेयं] और ज्ञेय [त्रिधा समाख्यातं] तीन प्रकार से वर्णित (त्रिकालस्पर्शी) [द्रव्यं] द्रव्य है । [पुन: द्रव्यं इति] (वह ज्ञेयभूत) द्रव्य अर्थात् [आत्मा] आत्मा (स्वात्मा) [पर: च] और पर [परिणामसम्बद्ध] जो कि परिणाम वाले हैं ॥३६॥