विग्रह
From जैनकोष
विग्रहो देहः।.....अथवा।
स.सि./२/५/१८२/७ विरुद्धो ग्रहो विग्रहो ब्याघातः। कर्मादानेऽति नोकर्म पुद्गलादाननिरोधः इत्यर्थः।
स.सि./२/२७/१८४/७ विग्रहो व्याघातः कौटिल्यमित्यर्थः। =
- विग्रह का अर्थ देह है। (रा.वा./२/२५/१/ त.सा./२/९६); (१३६/२९; ध.१/१, १, ६०/२९९/१)।
- अथवा विरुद्ध ग्रह का विग्रह कहते हैं, जिसका अर्थ व्याघात है। तात्पर्य यह है कि जिस अवस्था में कर्म के ग्रहण होने पर भी नोकर्मरूप पुद्गलों का ग्रहण नहीं होता वह विग्रह है। (रा.वा./२/२५/२/१३७/४); (ध.१/१, १, ६०/२९९/३)।
- अथवा विग्रह का अर्थ व्याघात या कुटिलता है। (रा.वा./२/२७/...../१३८/८); (ध.१/१, १, ६०/२९९/४)।
रा.वा./२/२५/१/१३६/२९ औदारिकादिशरीरनामोदयात् तन्निवृत्तिसमर्थान् विविधान् पुद्गलान् गृह्वाति, विगृह्यते वासौ ससारिणेति विग्रहो देहः। = औदारिकादि नामकर्म के उदय से उन शरीरों के योग्य पुद्गलों का ग्रहण विग्रह कहलाता है। अतएव संसारी जीव के द्वारा शरीर का ग्रहण किया जाता है। इसलिए देह को विग्रह कहते हैं। (ध.१/१, १, ६०/२९९/४) ।
ध.४/१, ३, २/२९/८ विग्गहो वक्को कुटिलोत्ति एगट्ठो। = विग्रह, वक्र और कुटिल ये सब एकार्थवाची नाम हैं।