GP:प्रवचनसार - गाथा 49 - अर्थ
From जैनकोष
[यदि] यदि [अनन्तपर्यायं] अनन्त पर्याय-वाले [एकं द्रव्यं] एक द्रव्य को (आत्मद्रव्य को) [अनन्तानि द्रव्यजातानि] तथा अनन्त द्रव्य-समूह को [युगपद्] एक ही साथ [न विजानाति] नहीं जानता [सः] तो वह पुरुष [सर्वाणि] सब को (अनन्त द्रव्य-समूह को) [कथं जानाति] कैसे जान सकेगा? (अर्थात् जो आत्म-द्रव्य को नहीं जानता हो वह समस्त द्रव्य-समूह को नहीं जान सकता) ॥४९॥
प्रकारांतर से अन्वयार्थ - [यदि] यदि [अनन्तपर्यायं] अनन्त पर्यायवाले [एकं द्रव्यं] एक द्रव्य को (आत्म-द्रव्य को) [न विजानाति] नहीं जानता [सः] तो वह पुरुष [युगपद्] एक ही साथ [सर्वाणि अनन्तानि द्रव्यजातानि] सर्व अनन्त द्रव्य-समूह को [कथं जानाति] कैसे जान सकेगा? ॥४९॥