विचित्र
From जैनकोष
न्या.वि./वृ./१/८/१४८/४७ तद्विपरीतं विचित्रं–क्षणक्षयविषयत्वं प्रत्यक्षस्य।
न्या.वि./वृ./१/८/१५७/१९ तद्विशिनष्टि विचित्रं शबलं सामान्यस्य विशेषात्मकं विशेषस्य सामान्यात्मकमिति। = उस (चित्र) से विपरीत विचित्र है। प्रत्यक्षज्ञान क्षणक्षयी विषय इसका अर्थ है। विचित्र शबल अर्थात् सामान्य का विशेषात्मक रूप और विशेष का सामान्यात्मकरूप।