विजय
From जैनकोष
- भगवान सुपार्श्वनाथ का शासक यक्ष–दे. तीर्थंकर/५/३।
- कल्पातीत देवों का एक भेद–दे. स्वर्ग/३।
- इनका लोक में अवस्थान–दे. स्वर्ग/५/४।
- विद्युत्प्रभ तथा माल्यवान गजदन्त का कूट–दे. लोक/५/४।
- निषध पर्वत का कूट तथा उसका रक्षक देव–दे. लोक/५/४।
- जम्बूद्वीप की जगती का पूर्व द्वार–दे. लोक/३/१।
- पूर्व विदेह के मन्दर वक्षार के कच्छवद्कूट का रक्षक देव–दे. लोक/५/४।
- हरिक्षेत्र का नाभिगिरि–दे. लोक/५/३।
- नन्दनवन का एक कूट–दे. लोक/५/५।
- म.पु./५७/श्लो.पूर्वभव् नं. २ में राजगृह नगर के राजा विश्वभूति का छोटा भाई ‘विशाखभूति’ था।७३। पूर्वभव नं. १ में महाशक्र स्वर्ग में देव हुआ।८२। वर्तमान भव में प्रथम बलदेव हुए–दे. शलाकापुरुष/३।
- बृ. कथाकोश/कथा नं. ६/पृ.- सिंहलद्वीप के शासक गगनादित्य का पुत्र था।१७। पिता की मृत्यु के पश्चात् अपने पिता के मित्र के घर ‘विषान्न’ शब्द का अर्थ ‘पौष्टिक अन्न समझकर उसे खा गया, पर मरा नहीं।१८। फिर दीक्षा ले मोक्ष सिधारे।१९।