GP:प्रवचनसार - गाथा 68.1 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी
From जैनकोष
(अब सर्वज्ञ-नमस्कार परक दो गाथाओं वाला पाँचवे स्थल का चौथा भाग प्रारम्भ होता है ।)
[तेजो दिट्ठी णाणं इड्ढी सोक्खं तहेव ईसरियं तिहुवणपहाणदइयं] -
- प्रभामण्डल,
- तीनलोक तीनकालवर्तीं सम्पूर्ण वस्तुओं के सामान्य-अस्तित्व को एक साथ ग्रहण करनेवाला केवलदर्शन,
- उसीप्रकार सभी के विशेष-अस्तित्व को ग्रहण करने वाला केवल-ज्ञान,
- ऋद्धि शब्द से समवशरणादि लक्षण विभूति,
- सुख शब्द से अव्याबाध अनंतसुख,
- उस पद की इच्छा से इन्द्र आदि भी भृत्यता (सेवा-नौकरी) करते हैं - इस लक्षण वाली ईश्वरता,
- तीन-लोकों के राजाओं के भी प्रिय-स्वामी देव कहे जाते हैं
इसप्रकार वस्तु-स्तवनरूप से नमस्कार किया गया है ।