GP:प्रवचनसार - गाथा 89 - अर्थ
From जैनकोष
[यः] जो [निश्चयत:] निश्चय से [ज्ञानात्मकं आत्मानं] ज्ञानात्मक ऐसे अपने को [च] और [परं] पर को [द्रव्यत्वेन अभिसंबद्धम्] निज-निज द्रव्यत्व से संबद्ध (संयुक्त) [यदि जानाति] जानता है, [सः] वह [मोह क्षयं करोति] मोह का क्षय करता है ॥८९॥