ग्रन्थ:प्रवचनसार - गाथा 131 - तत्त्व-प्रदीपिका
From जैनकोष
मुत्ता इंदियगेज्झा पोग्गलदव्वप्पगा अणेगविधा । (131)
दव्वाणममुत्तणं गुणा अमुत्ता मुणेदव्वा ॥141॥
अर्थ:
पुद्गल द्रव्यात्मक मूर्त-गुण इन्द्रियों से ग्राह्य और अनेक प्रकार के हैं तथा अमूर्त द्रव्यों के गुण अमूर्त जानना चाहिये ।
तत्त्व-प्रदीपिका:
अथ मूर्तामूर्तगुणानां लक्षणसंबंधमाख्याति -
मूर्तानां गुणानामिन्द्रियग्राह्यत्वं लक्षणम् । अमूर्तानां तदेव विपर्यस्तम् । ते च मूर्ता: पुद्गल- द्रव्यस्य, तस्यैवेकस्य मूर्तत्वात् । अमूर्ता: शेषद्रव्याणां पुद्गलादन्येषां सर्वेषामप्यमूर्त-त्वात् ॥१३१॥
तत्त्व-प्रदीपिका हिंदी :
मूर्त गुणों का लक्षण इन्द्रियग्राह्यत्व है; और अमूर्तगुणों का उससे विपरीत है; (अर्थात् अमूर्त गुण इन्द्रियों से ज्ञात नहीं होते ।) और मूर्त गुण पुद्गलद्रव्य के हैं, क्योंकि वही (पुद्गल ही) एक मूर्त है; और अमूर्त गुण शेष द्रव्यों के हैं, क्योंकि पुद्गल के अतिरिक्त शेष सभी द्रव्य अमूर्त हैं ॥१३१॥