ग्रन्थ:प्रवचनसार - गाथा 146.1 - तात्पर्य-वृत्ति
From जैनकोष
पंच वि इंदियपाणा मणवचिकाया य तिण्णि बलपाणा ।
आणप्पाणप्पाणो आउगपाणेण होंति दसपाणा ॥158॥
अर्थ: GP:प्रवचनसार - गाथा 146.1 - अर्थ
तात्पर्य-वृत्ति:
अथ त एवप्राणा भेदनयेन दशविधा भवन्तीत्यावेदयति --
इन्द्रियप्राणः पञ्चविधः, त्रिधा बलप्राणः, पुनश्चैक आनपानप्राणः, आयुःप्राणश्चेति भेदेन दशप्राणास्तेऽपि चिदानन्दैकस्वभावात्परमात्मनो निश्चयेन भिन्ना ज्ञातव्या इत्यभिप्रायः ॥१५८॥
तात्पर्य-वृत्ति हिंदी :
पाँच प्रकार के इन्द्रिय प्राण, तीन प्रकार के बल प्राण और एक स्वासोच्छ्वास और एक आयु प्राण- इस प्रकार भेद से दस प्राण हैं; वे भी निश्चय से ज्ञानानन्द एक स्वभावी परमात्मा से भिन्न जानना चाहिये - ऐसा अभिप्राय है ॥१५८॥