ग्रन्थ:प्रवचनसार - गाथा 166 - तत्त्व-प्रदीपिका
From जैनकोष
णिद्धत्तणेण दुगुणो चदुगुणणिद्धेण बंधमणुभवदि । (166)
लुक्खेण वा तिगुणिदो अणु बज्झदि पंचगुणजुत्तो ॥178॥
अर्थ:
[स्निग्धत्वेन द्विगुण:] स्निग्धरूप से दो अंशवाला परमाणु [चतुर्गुणस्निग्धेन] चार अंशवाले स्निग्ध (अथवा रूक्ष) परमाणु के साथ [बंध अनुभवति] बंध का अनुभव करता है । [वा] अथवा [रूक्षेण त्रिगुणित: अणु:] रूक्षरूप से तीन अंशवाला परमाणु [पंचगुणयुक्त:] पाँच अंशवाले के साथ युक्त होता हुआ [बध्यते] बंधता है ।
तत्त्व-प्रदीपिका:
अथ परमाणूनां पिण्डत्वस्य यथोदितहेतुत्वमवधारयति -
यथोदितहेतुकमेव परमाणूनां पिण्डत्वमवधार्यं, द्विचतुर्गुणयोस्त्रिपञ्चगुणयोश्च द्वयो: स्निग्धयो: द्वयो रुक्षयोर्द्वयो: स्निग्धरुक्षयोर्वा परमाण्वोर्बन्धस्य प्रसिद्धे: ।
उक्तं च -
[णिद्धा णिद्धेण बज्झंति लुक्खा लुक्खा य पोग्गला ।
णिद्धलुक्खा य बज्झंति रूवारूवी य पोग्गला ॥
णिद्धस्स णिद्धेण दुराहिएण लुक्खस्स लुक्खेण दुराहिएण।
णिद्धस्स लुक्खेण हवेदि बंधो जहण्णवज्जे विसमे समे वा ॥१६६॥ ]
तत्त्व-प्रदीपिका हिंदी :
यथोक्त हेतु से ही परमाणुओं के पिण्डपना होता है ऐसा निश्चित करना चाहिये; क्योंकि दो और चार गुणवाले तथा तीन और पाँच गुणवाले दो स्निग्ध परमाणुओं के अथवा दो रूक्ष परमाणुओं के अथवा दो स्निग्ध-रूक्ष परमाणुओं के (एक स्निग्ध और एक रूक्ष परमाणु के) बंध की प्रसिद्धि है । कहा भी है कि :—
((णिद्धा णिद्धेण बज्झंति लुक्खा लुक्खा य पोग्गला ।
णिद्धलुक्खा य बज्झंति रूवारूवी य पोग्गला ॥
णिद्धस्स णिद्धेण दुराहिएण लुक्खस्स लुक्खेण दुराहिएण ।
णिद्धस्स लुक्खेण हवेदि बंधो जहण्णवज्जे विसमे समे वा ॥))
(अर्थ :—पुद्गल 'रूपी' और 'अरूपी' होते हैं । उनमें से स्निग्ध पुद्गल स्निग्ध के साथ बंधते हैं, रूक्ष पुद्गल रूक्ष के साथ बंधते हैं, स्निग्ध और रूक्ष भी बंधते हैं ।)
जघन्य के अतिरिक्त सम अंशवाला हो, या विषम अंशवाला हो, स्निग्ध का दो अधिक अंशवाले स्निग्ध परमाणु के साथ, रूक्ष का दो अधिक अंशवाले रूक्ष परमाणु के साथ और स्निग्ध का (दो अधिक अंशवाले) रूक्ष परमाणु के साथ बंध होता है ।