ग्रन्थ:प्रवचनसार - गाथा 199 - तत्त्व-प्रदीपिका
From जैनकोष
एवं जिणा जिणिंदा सिद्धा मग्गं समुट्ठिदा समणा । (199)
जादा णमोत्थु तेसिं तस्स य णिव्वाणमग्गस्स ॥212॥
अर्थ:
[जिना: जिनेन्द्रा: श्रमणा:] जिन, जिनेन्द्र और श्रमण (अर्थात् सामान्यकेवली, तीर्थंकर और मुनि) [एवं] इस [पूर्वोक्त ही] प्रकार से [मार्गं समुत्थिता:] मार्ग में आरूढ़ होते हुए [सिद्धा: जाता:] सिद्ध हुए [तेभ्य:] उन्हें [च] और [तस्मै निर्वाण मार्गाय] उस निर्वाणमार्ग को [नमोऽस्तु] नमस्कार हो ।
तत्त्व-प्रदीपिका:
अथायमेव शुद्धात्मोपलम्भलक्षणो मोक्षस्य मार्ग इत्यवधारयति --
यतः सर्व एव सामान्यचरमशरीरास्तीर्थकराः अचरमशरीरा मुमुक्षवश्चामुनैव यथोदि-तेन शुद्धात्मतत्त्वप्रवृत्तिलक्षणेन विधिना प्रवृत्तमोक्षस्य मार्गमधिगम्य सिद्धा बभूवुः, न पुनरन्यथापि, ततोऽवधार्यते केवलमयमेक एव मोक्षस्य मार्गो, न द्वितीय इति । अलं च प्रपंचेन । तेषां शुद्धात्मतत्त्वप्रवृत्तानां सिद्धानां तस्य शुद्धात्मतत्त्वप्रवृत्तिरूपस्य मोक्षमार्गस्यच प्रत्यस्तमितभाव्यभावकविभागत्वेन नोआगमभावनमस्कारोऽस्तु । अवधारितो मोक्षमार्गः,कृत्यमनुष्ठीयते ॥१९९॥
तत्त्व-प्रदीपिका हिंदी :
सभी सामान्य चरम-शरीरी, तीर्थंकर और अचरम-शरीरी मुमुक्षु इसी यथोक्त शुद्धात्म-तत्त्व-प्रवृत्तिलक्षण (शुद्धात्मतत्त्व में प्रवृत्ति जिसका लक्षण है ऐसी) विधि से प्रवर्तमान मोक्षमार्ग को प्राप्त सिद्ध हुए; किन्तु ऐसा नहीं है कि किसी दूसरी विधि से भी सिद्ध हुए हों । इससे निश्चित होता है कि केवल यह एक ही मोक्ष का मार्ग है, दूसरा नहीं । अधिक विस्तार से पूरा पड़े ! उस शुद्धात्म-तत्त्व में प्रवर्ते हुए सिद्धों को तथा उस शुद्धात्म-तत्त्व-प्रवृत्तिरूप मोक्षमार्ग को, जिसमें से भाव्य और भावक का विभाग अस्त हो गया है ऐसा नोआगम-भाव-नमस्कार हो ! मोक्षमार्ग अवधारित किया है, कृत्य किया जा रहा है, (अर्थात् मोक्षमार्ग निश्चित किया है और उसमें) प्रवर्तन कर रहे हैं ॥१९९॥
अब, 'साम्य को प्राप्त करता हूँ' ऐसी (पाँचवीं गाथा में की गई) पूर्व-प्रतिज्ञा का निर्वहण करते हुए (आचार्यदेव) स्वयं भी मोक्षमार्गभूत शुद्धात्मप्रवृत्ति करते हैं --