ग्रन्थ:सर्वार्थसिद्धि - अधिकार 1 - सूत्र 29
From जैनकोष
229. अथान्ते यन्निर्दिष्टं केवलज्ञानं तस्य को विषयनिबन्ध इत्यत आह –
229. अब अन्तमें जो केवलज्ञान कहा है उसका विषय क्या है यह बतलानेके लिए आगे का सूत्र कहते हैं –
सर्वद्रव्यपर्यायेषु केवलस्य।।29।।
केवलज्ञानकी प्रवृत्ति सब द्रव्य और उनकी सब पर्यायोंमें होती है।।29।।
230. द्रव्याणि च पर्यायाश्च द्रव्यपर्याया इति इतेरतरयोगलक्षणो द्वन्द्व:। तद्विशेषणं ‘सर्व’ ग्रहणं प्रत्येकमभिसंबध्यते, सर्वेषु द्रव्येषु सर्वेषु पर्यायेष्विति। जीवद्रव्याणि तावदनन्तानन्तानि ततोप्यनऽन्ता-नन्तानि पुद्गलद्रव्याणि च अणुस्कन्धभेदभिन्नानि[1], धर्माधर्माकाशानि त्रीणि, कालश्चासंख्येयस्तेषां पर्यायाश्च त्रिकालभुव: प्रत्येकमनन्तानन्तास्तेषु। द्रव्यं पर्यायजातं वा न किंचित्केवलज्ञानस्य विषयभाव-मतिक्रान्तमस्ति। अपरिमितमहात्म्यं हि तदिति ज्ञापनार्थं ‘सर्वद्रव्यपर्यायेषु’ इत्युच्यते।
230. सूत्रमें आये हुए द्रव्य और पर्याय इन दोनों पदोंका इतरेतरयोग द्वन्द्वसमास है। तथा इन दोनोंके विशेषरूपसे आये हुए ‘सर्व’ पदको द्रव्य और पर्याय इन दोनोंके साथ जोड़ लेना चाहिए। यथा – सब द्रव्योंमें और सब पर्यायोंमें। जीव द्रव्य अनन्तानन्त हैं। पुद्गल द्रव्य इनसे भी अनन्तानन्तगुणे हैं। जिनके अणु और स्कन्ध ये भेद हैं। धर्म, अधर्म और आकाश ये तीन हैं और काल असंख्यात हैं। इन सब द्रव्योंकी पृथक्-पृथक् तीनों कालोंमें होनेवाली अनन्तानन्त पर्यायें हैं। इन सबमें केवलज्ञानकी प्रवृत्ति होती है। ऐसा न कोई द्रव्य है और न पर्यायसमूह है जो केवलज्ञानके विषयके परे हो। केवलज्ञानका माहात्म्य अपरिमित है इसी बातका ज्ञान करानेके लिए सूत्रमें ‘सर्वद्रव्यपर्यायेषु’ पद कहा है।
विशेषार्थ – यहाँ चार सूत्रोंमें पाँचों ज्ञानोंके विषयका निर्देश किया गया है। मतिज्ञान और श्रुतज्ञान पाँचों इन्द्रियों और मनकी सहायतासे प्रवृत्त होते हैं यह तो स्पष्ट ही है, इसलिए इनका विषय मूर्तिक पदार्थ ही हो सकता है। पर मन विकल्प-द्वारा रूपी और अरूपी सभी पदार्थोंको जानता है, इसीसे इन दोनों ज्ञानोंका विषय छहों द्रव्य और उनकी कुछ पर्यायोंको बतलाया है। अवधिज्ञान यद्यपि बाह्य सहायताके बिना प्रवृत्ति होता है, पर वह क्षायोपशमिक होनेसे उसका विषय मूर्तिक पदार्थ ही हो सकता है। इसी कारणसे अवधिज्ञानका विषय रूपी पदार्थ कहा है। मन:पर्ययज्ञान भी क्षायोपशमिक होता है, इसलिए उसका विषय यद्यपि रूपी पदार्थ ही है, पर यह रूपी पदार्थको मनकी पर्यायों-द्वारा ही ग्रहण करता है, इससे इसका विषय अवधिज्ञानके विषयके अनन्तवें भागप्रमाण कहा है तथा केवलज्ञान निरावरण होता है, इसलिए उसका विषय सब द्रव्य और उनकी सब पर्यायें हैं ऐसा कहा है।
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सर्वार्थसिद्धि अनुक्रमणिका
- ↑ भेदेन भि—मु.।