ग्रन्थ:सर्वार्थसिद्धि - अधिकार 2 - सूत्र 43
From जैनकोष
344. अविशेषाभिधानात्तैरौदारिकादिभि: सर्वस्य संसारिणो यौगपद्येन संबन्धप्रसंगे संभविशरीर-प्रदर्शनार्थमिदमुच्यते –
344. सामान्य कथन करनेसे उन औदारिकादि शरीरोंके साथ सब संसारी जीवोंका एक साथ सम्बन्ध प्राप्त होता है, अत: एक साथ कितने शरीर सम्भव हैं इस बातको दिखलाने के लिए आगेका सूत्र कहते हैं –
तदादीनि भाज्यानि युगपदे[1]कस्या चतुर्भ्य:।।43।।
एक साथ एक जीवके तैजस और कार्मणसे लेकर चार शरीर तक विकल्पसे होते हैं।।43।।
345. ‘तत्’ शब्द: प्रकृततैजसकार्मणप्रतिनिर्देशार्थ:। तै तैजसकार्मणे आदिर्येषां तानि तदादीनि। भाज्यानि विकल्प्यानि। आ कुत: ? आ चतुर्भ्य:। युगपदेकस्यात्मन:। कस्यचिद् द्वे तैजसकार्मणे। अपरस्य त्रीणि औदारिकतैजसकार्मणानि वैक्रियिकतैजसकार्मणानि वा। अन्यस्य चत्वारि औदारिकाहारकतैजस-कार्मणानीति विभाग: क्रियते।
345. सूत्रमें प्रकरण प्राप्त तैजस और कार्मण शरीरका निर्देश करनेके लिए ‘तत्’ शब्द दिया है। तदादि शब्दका समासलभ्य अर्थ है – तैजस और कार्मण शरीर जिनके आदि हैं वे। भाज्य और विकल्प्य ये पर्यायवाची नाम हैं। तात्पर्य यह है कि एक साथ एक आत्माके पूर्वोक्त दो शरीरसे लेकर चार शरीर तक विकल्पसे होते हैं। किसीके तैजस और कार्मण ये दो शरीर होते हैं। अन्यके औदारिक, तैजस और कार्मण या वैक्रियिक, तैजस और कार्मण ये तीन शरीर होते हैं। किसी दूसरेके औदारिक, आहारक, तैजस और कार्मण ये चार शरीर होते हैं। इस प्रकार यह विभाग यहाँ किया गया है।
विशेषार्थ – आगे 47वें सूत्रमें तपोविशेषके बलसे वैक्रियिक शरीरकी उत्पत्तिका निर्देश किया है, इसलिए प्रश्न होता है कि किसी ऋद्धिधारी साधुके एक साथ पाँच शरीरका सद्भाव माननेमें क्यो हानि है ? समाधान यह है कि एक साथ वैक्रियिक और आहारक ऋद्धिकी प्रवृत्ति नहीं होती, इसलिए एक तो एक साथ आहारक शरीरके साथ वैक्रियिक शरीरका अवस्थान नहीं बन सकता। दूसरे तपोविषेषसे जो विक्रिया प्राप्त होती है वह औदारिक शरीरसम्बन्धी ही विक्रिया है। उसे स्वतन्त्र वैक्रियिक शरीर मानना उचित नहीं है। कर्मसाहित्यमें वैक्रियिक शरीर नामकर्मके उदयसे जो शरीर प्राप्त होता है उसकी परिगणना ही वैक्रियिक शरीरमें की गयी है। इसलिए अधिकारी भेद होनेसे औदारिक और आहारक शरीरके साथ वैक्रियिक शरीर नहीं बन सकता। यही कारण है कि एक साथ अधिकसे अधिक चार शरीर बतलाये हैं।
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सर्वार्थसिद्धि अनुक्रमणिका
- ↑ -देकस्मिन्ना च- मु.।